UPSSSC PET Hindi Passage Practice Set 3: पिछले पेपर पर आधारित गद्यांश सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

UPSSSC PET Hindi passage Practice Set 3: उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा प्रत्येक वर्ष यूपी पेट परीक्षा का आयोजन किया जाता है जो भी उम्मीदवार उत्तर प्रदेश के हैं या किसी अन्य राज्य के हैं और वह उम्मीदवार यूपीट्रिपलएससी आयोग द्वारा जारी होने वाली भर्तियों में भाग लेना चाहते हैं तो उनको UPSSSC PET Exam 2022 परीक्षा पास करना अनिवार्य है क्योंकि यह परीक्षा एक प्री परीक्षा है इसी परीक्षा में प्राप्त अंको के आधार पर मेंस परीक्षा आयोजित की जाएगी, इस लेख के जरिये आप PET Practice Set in Hindi को प्राप्त कर सकतें हैं और साथ ही अन्य परीक्षा के Practice Set प्राप्त करने के लिए क्लिक करें।

इस परीक्षा के प्राप्त अंको के आधार पर आने वाली भर्तियों में मेरिट बनाकर मेंस परीक्षा के लिए उम्मीदवारों का चयन किया जाता है इसलिए आप UPSSSC PET Exam की तैयारी बढ़िया तरीके से करें तथा परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर, मेंस परीक्षा के लिए योग्य रहे और PET Practice Set Online लगाते रहे, इस लिए हम आपके लिए up pet Exam में पूछें गए UPSSSC PET Hindi Practice Set के महत्वपूर्ण प्रश्न लेकर आये है जिसको आप हल करके अपनी तैयारी जाँच सकते हैं।

नीचे की तरफ हम आपको यूपी पेट परीक्षा में पूछें जानें वाले हिंदी गद्यांश संबंधित प्रश्न दिए हैं जो यूपी ट्रिपल एससी पेट परीक्षा में 10 अंकों के आते हैं, जिसको हल करें और अपनी तैयारी को मजबूत करें।

UPSSSC PET Hindi Passage Practice Set 3

UPSSSC PET Hindi Passage Practice Set 3

पैसेज 1 :- स्वतंत्रता संग्राम मनुष्य में उत्तम और स्पृहणीय विशेषताएँ पैदा करता है और भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम भी इसका अपवाद नहीं है। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में यह युद्ध बिना किसी ईर्ष्या-द्वेष तथा खून-खराबे के लड़ा गया था। गाँधीजी इसे सत्याग्रह कहते थे। इसके पीछे उनकी शिक्षा, धार्मिक आस्था तथा अन्य उपलब्धियों का उतना हाथ नहीं था जितना उनके सदाचरण और व्यवहार का । इस स्वातंत्र्य आन्दोलन को स्मरण रखने का मुख्य कारण यह है कि यह जनतांत्रिक था अर्थात् इसमें देश के हर वर्ग और जाति के लोग सम्मिलित थे, चाहे वे धनी हों या गरीब, नर हों या नारी हों अथवा विभिन्न सम्प्रदायों , के। इसके साथ ही यह एक धर्मनिरपेक्ष और स्वतंत्रता कर्मियों का संघर्षशील राष्ट्रीय आन्दोलन था। स्वतंत्र भारत के नागरिक के रूप में हम आज जनतांत्रिकता और धर्मनिरपेक्षता का लाभ उठा रहे हैं। हम सोच नहीं सकते कि इतने बड़े देश में अपना शासन करने के लिए हम अपना प्रतिनिधि नहीं चुन सकते थे या कोई गंदा कानून लागू कर दिया जाता तो हम उसके विरुद्ध आवाज नहीं उठा सकते थे और अपनी राय स्वतंत्रतापूर्वक व्यक्त नहीं कर सकते थे।

प्रश्न. उपर्युक्त गद्यांश में प्रयुक्त ‘स्पृहणीय’ शब्द का अर्थ है

  1. प्राप्त करने योग्य
  2. प्राप्त की हुई
  3. त्याग करने योग्य
  4. त्याग की हुई

उत्तर – 1

प्रश्न. उपर्युक्त गद्यांश में लेखक ने मुख्य रूप से बताया है कि

  1. आजादी में क्रांतिकारियों की विशेष भूमिका थी।
  2. आजादी के संघर्ष में कृषकों का योगदान था।
  3. गुलाम देश की दशा कैसी थी।
  4. महात्मा गाँधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आन्दोलन कैसा था।

उत्तर – 4

प्रश्न. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक का उद्देश्य क्या था?

  1. धार्मिक आस्थाओं और सद्व्यवहार को बढ़ावा देना।
  2. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की विशेषता बताना।
  3. अंग्रेजी राज्य के दोष गिनाना।
  4. जनतांत्रिकता से हानि बताना।

उत्तर – 2

प्रश्न. धर्मनिरपेक्षता से अभिप्राय है?

  1. सभी धर्मों का आदर
  2. धर्म में हस्तक्षेप न करना
  3. धर्म की अवज्ञा
  4. किसी भी धर्म को न मानना

उत्तर – 1

प्रश्न. कैसे माना जाए कि हमारा स्वतंत्रता संग्राम जनतांत्रिक था ?

  1. यह महात्मा गाँधी के सद्व्यवहार और सदाचरण का प्रतीक था।
  2. इसमें हिन्दू और मुसलमान सम्मिलित हुए थे।
  3. यह स्वतंत्रता-प्रेमियों का आन्दोलन था।
  4. इसमें सभी जातियों, वर्गों, धर्मों के लोगों ने भाग लिया था।

उत्तर – 4

पैसेज 2:- विधाता-रचित इस सृष्टि का सिरमौर है मनुष्य । उसकी कारीगरी का सर्वोत्तम नमूना । इस मानव को ब्रह्माण्ड का लघु रूप मानकर भारतीय दार्शनिकों ने ‘यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे’ की कल्पना की थी। उनकी यह कल्पना मात्र कल्पना नहीं थी, प्रत्युत यथार्थ भी थी क्योंकि मानव-मन में जो विचारणा के रूप में घटित होता है, उसी का कृति रूप ही तो सृष्टि है। मन तो मन, मानव का शरीर भी अप्रतिम है। देखने में इससे भव्य, आकर्षक एवं लावण्यमय रूप सृष्टि में अन्यत्र कहाँ है? अद्भुत एवं अद्वितीय है मानव-सौन्दर्य! साहित्यकारों ने इसके रूप-सौन्दर्यके वर्णन के लिए कितने ही अप्रस्तुतों का विधान किया है और इस सौन्दर्य राशि से सभी को आप्यायित करने के लिए अनेक काव्य सृष्टियाँ रच डाली हैं।

साहित्यशास्त्रियों ने भी इसी मानव की भावनाओं का विवेचन करते हुए अनेक रसों का निरूपण किया है। परन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से विचार किया जाए जो मानव शरीर को एक जटिल यन्त्र से उपमित किया जा सकता है। जिस प्रकार यन्त्र के एक पुर्जे में दोष आ जाने पर सारा यन्त्र गड़बड़ा जाता है, बेकार हो जाता है उसी प्रकार मानव शरीर के विभिन्न अवयवों में से यदि कोई एक अवयव भी बिगड़ जाता है तो उसका प्रभाव सारे शरीर पर पड़ता है। इतना ही नहीं, गुर्दे जैसे कोमल एवं नाजुक हिस्से के खराब हो जाने से यह गतिशील वपुयन्त्र एकाएक अवरुद्ध हो सकता है, व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। एक अंग के विकृत होने पर सारा शरीर दण्डित हो, वह कालकवलित हो जाए – यह विचारणीय है।

यदि किसी यन्त्र के पुर्जे को बदलकर उसके स्थान पर नया पुर्जा लगाकर यन्त्र को पूर्ववत सुचारु एवं व्यवस्थित रूप से क्रियाशील बनाया जा सकता है तो शरीर के विकृत अंग के स्थान पर नव्य निरामय अंग लगाकर शरीर को स्वस्थ एवं सामान्य क्यों नहीं बनाया जा सकता? शल्य चिकित्सकों ने इस दायित्वपूर्ण चुनौती को स्वीकार किया तथा निरन्तर अध्यवसाय पूर्णसाधना के अनन्तर अंग-प्रत्यारोपण के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की। अंग-प्रत्यारोपण का उद्देश्य है कि मनुष्य दीर्घायु प्राप्त कर सके। यहाँ यह ध्यातव्य है कि मानव-शरीर हर किसी के अंग को उसी प्रकार स्वीकार नहीं करता, जिस प्रकार हर किसी का रक्त उसे स्वीकार्य नहीं करता। रोगी को रक्त देने से पूर्व रक्त-वर्ग का परीक्षण अत्यावश्यक है, तो अंग-प्रत्यारोपण से पूर्व ऊतक-परीक्षण अनिवार्य है। आज का शल्य चिकित्सक गुर्दे, यकृत, आँत, फेफड़े और हृदय का प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक कर रहा है। साधन सम्पन्न चिकित्सालयों में मस्तिष्क के अतिरिक्त शरीर के प्रायः सभी अंगों का प्रत्यारोपण सम्भव हो गया है।

प्रश्न. मानव को सृष्टि का लघु रूप माना गया है क्योंकि

  1. मानव-मन में जो घटित होता है, वही सृष्टि में घटित होता है।
  2. मानव सृष्टि का सिरमौर है।
  3. मन की शक्ति अपराजेय है।
  4. लघु मानव की विधाता की सच्ची सृष्टि है।

उत्तर – 1

प्रश्न. वैज्ञानिक दृष्टि का अपेक्षाकृत अभाव होता है?

  1. साहित्यकार में
  2. साहित्यशास्त्री में
  3. शल्य-चिकित्सक में
  4. वैज्ञानिक में

उत्तर – 2

प्रश्न. मानव शरीर को यन्त्रवत् कहा गया है क्योंकि

  1. मानव शरीर दृढ़ माँसपेशियों और अवयवों से निर्मित है।
  2. मानव शरीर यन्त्र की भाँति लावण्यमय होता है।
  3. अवयव रूपी पुर्जों के विकृत होने से शरीर यन्त्रवत् निष्क्रिय हो जाता है।
  4. मानव शरीर विधाता की सृष्टि की अनुपम कृति है।

उत्तर – 3

प्रश्न. शल्य-चिकित्सकों द्वारा स्वीकार की गई दायित्वपूर्ण चुनौती थी?

  1. जीर्ण शरीर के स्थान पर स्वस्थ शरीर देना
  2. मानव-शरीर को मृत्यु से बचाना
  3. अंग-प्रत्यारोपण द्वारा शरीर को सामान्य बनाना
  4. शल्य-चिकित्सा का महत्त्व स्थापित करना

उत्तर – 3

प्रश्न. अनुच्छेद में प्रयुक्त ‘निरामय’ शब्द का पर्याय है

  1. सुन्दर
  2. अद्भुत
  3. स्वस्थ
  4. नवीन

उत्तर – 3

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